राजेश मिश्र
तेज़ रफ़्तार दौर में जब स्त्रियाँ आकाश की ऊँचाइयों को छू रही हैं, तब भी तीज का पर्व उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ देता है। कभी यह त्योहार सिर्फ़ पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने तक सीमित माना जाता था। स्त्रियाँ घर की चारदीवारी में सजधज कर गीत गातीं, झूले झूलतीं और उपवास करतीं। लेकिन आज की महिला के लिए तीज का अर्थ कहीं अधिक व्यापक और गहरा हो गया है।
आज की स्त्री डॉक्टर भी है, इंजीनियर भी, प्रोफ़ेसर भी और व्यवसाय की अगुआ भी। उसने अपने सपनों को जीना सीखा है। फिर भी तीज का दिन आते ही वह उसी लगन से मेहंदी रचाती है, सोलह श्रृंगार करती है और उपवास रखती है। फर्क सिर्फ़ इतना है कि अब यह व्रत उसके लिए केवल पति के जीवन का नहीं, बल्कि अपने रिश्ते के जीवन का उत्सव है।
आज की नारी के लिए तीज आत्मबल का प्रतीक हैकृअपने धैर्य, अपनी सहनशीलता और अपनी संवेदनाओं को महसूस करने का अवसर। यही वजह है कि अब बहुत-सी जगहों पर पति भी पत्नियों के साथ उपवास रखते हैं। यह बदलाव बताता है कि रिश्ते अब केवल एकतरफ़ा समर्पण पर नहीं, बल्कि बराबरी और साझेदारी पर टिके हैं।
सोशल मीडिया के इस युग में तीज ने आधुनिकता का रंग भी ओढ़ लिया है। पारंपरिक लिबास और झूमते-गाते दृश्य अब केवल आँगन तक सीमित नहीं, बल्कि दुनिया भर में साझा किए जाते हैं। कहीं यह त्योहार फैशन और सेल्फ-केयर का रूप ले लेता है, तो कहीं सखियों के बीच नारीत्व का उत्सव बन जाता है।
तीज हमें यह याद दिलाता है कि आधुनिकता और परंपरा का मेल असंभव नहीं है। आज की महिला इसे साबित कर रही है। वह चाहें तो बोर्डरूम में निर्णय ले, या रसोई में पकवान बनाएकृपरंपरा की लौ उसके भीतर अब भी जलती रहती है। तीज उसी लौ को और उजाला देती है।
इसलिए तीज आज की नारी के लिए केवल व्रत नहीं, बल्कि एक संदेश है- रिश्तों में संतुलन, जीवन में अनुशासन और परंपरा में गौरव।यही तीज का बदलता हुआ और नया रूप हैकृजहाँ नारी केवल “सहधर्मिणी“ नहीं, बल्कि “सहयात्री“ बनकर खड़ी है।